रविवार, जून 07, 2015

वो कमरा याद आता है

मै जब भी ज़िन्दगी की चिलचिलाती धूप में तपकर 
मै जब भी दूसरो के और अपने झूठ से थककर 
मै सब से लड़के खुद से हार के 
जब भी उस कमरे में जाता था 

वो हलके और गहरे कत्थई रंगो का एक कमरा 
वो बेहद मेहरबाँ कमरा 
जो अपनी नर्म मुट्ठी में मुझे ऐसेछुपाता था 
जैसे कोई माँ बच्चे को आँचल में छुपाले और प्यार से डांटे 
ये क्या आदत है 
जलती दोपहर में मारे मारे घूमते हो तुम 

वो कमरा याद आता है 
ठोस और खासा भारी 
कुछ जरा मुशिकल से खुलने वाला
वो शीशम का दरवाज़ा 
की जैसे कोई अक्खड़ बाप 
अपने खुरदरे सीने में शफ़क़त के समंदर को छुपाये हो 

वो कुर्सी 
और उसके साथ वो जुड़वाँ बहन उसकी 
वो दोनों दोस्त थीं मेरी 

वो इक गुस्ताख़ मुंहफट आइना 
जो दिल का अच्छा था 
वो बेढंगी सी अलमारी जो कोने में खड़ी 
इक बूढी आया की तरह आईने को टोकती थी
वो इक गुलदान, नन्हा सा, बहुत शैतान 
उन दोनों पे हसता था  

वो खिड़की 
या जहानत से भरी इक मुश्कराहट 
और दरीचे पे झुकी वो बेल 
चुपके कानों  में कुछ कहती थी 

किताबे 
ताक पे और शेल्फ पर 
संजीदा उस्तानी बानी बैठी 
मगर सब मुन्तज़िर इस बात को, मै उनसे कुछ पूंछू 

सिरहाने नींद का साथी थकन का चारागर 
वो नर्म दिल तकिया 
मै  जिसकी गोद में सर रखके छत को देखता था 
छत की कड़ियों में न जाने कितने अफसानों की कड़ियाँ थी 
वो छोटी मेज पर और सामने दीवार पर लगी तश्वीरें 
मुझे अपनायत से और यकीं से देखती थी, मुश्कुराती थीं 

उन्हें शक भी नहीं था 
एक दिन 
मै उनके ऐसे छोड़ जाऊंगा 
मै  इक दिन यूँ भी जाऊंगा 
की फिर वापस न आऊंगा 

मै  अब जिस घर में रहता हूँ बहुत ही खूबसूरत है 
मगर अक्शर यहाँ खामोश  बैठा याद करता हूँ 
वो कमरा बात करता था 

शुक्रवार, फ़रवरी 13, 2015

चाँद से फूल से या मेरी जुंबा से सुनिए

चाँद से फूल से या मेरी जुंबा से सुनिए
हर तरफ आप का किस्सा है जहां से सुनिए

सब को आता नहीं दुनिया को सजाकर जीना
ज़िन्दगी क्या है मोहब्बत की जुबां से सुनिए

मेरी आवाज ही परदा है मेरे चेहरे का
मै ही खामोश जहाँ, मुझको वहां से सुनिए

क्या जरूरी है की हर परदा उठाया जाये
मेरे हालात भी अपने ही मकां से सुनिए


अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो - मजाज़ लखनवी

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो
मैंने माना की तुम इक पैकर-ए -रानाई हो
चमन -ए -दहेर में रूहे-चमना-आराई हो
तल्लते -ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-मेहताब हो गर्दू से उतर आई हो
मुझसे मिलने में अंदेशा-ए-रुश्वाई है
मैंने खुद अपने किये की सजा पायी है
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

उन दिनों मुझपे क़यामत का जुनूँ  तारी था
सर पे सरसारी-ओ-इशरत का जुनूँ  तारी था
माहपारों से मुंहब्बत का जुनूँ  तारी था
सहर-यारों से रक़ाबत का जुनूँ  तारी था
बिस्तर -ए- मखमल-ओ-संजाब  थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ- हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फरियाद-ए -जिगर दोज़ मेरा नाला-ए ज़ार
सिद्देत-ए -कर्ब में डूबी हुई मेरी गुफ़्तार
मैं के खुद अपने मज़ाक-ए -तराबागे का शिकार
वो गुदाज़-ए -दिल -ए -महररूम कहाँ से लाऊँ
अब मैं  वो जज़्बा-ए -मासूम कहाँ से लाऊँ
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

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पैकर-ए -रानाई = paradigm of beauty, चमन -ए -दहेर = Garden f earth
रूहे-चमना-आराई  = Soul of beautified garden, तलत-ए-मेहर = Face of Sun
फ़िरदौस : Paradise , बरनाई  = Youth
बिन्त-ए-मेहताब = Daughter of Moon, गर्दू  = Heavens
अंदेशा-ए-रुश्वाई = Possibility of Humiliation

सरसारी-ओ-इशरत = Satisfaction and Happiness, माहपारों = moon faced
सहर-यारों = Friends of the City, रक़ाबत = Animosity/Strong hostility
बिस्तर -ए- मखमल-ओ-संजाब = Bed of Velvet and Fur

मजरूह = Wounded, फरियाद = Appeal
जिगर दोज़ = Heart Piercing , नाला-ए ज़ार = Continuous Tears
सिद्देत-ए -कर्ब = Intensity of Grief, गुफ़्तार = Conversation
मज़ाक-ए -तराबागे : Cheerfulness of Wit
गुदाज़-ए -दिल = Genteleness of the heart , महररूम = Dead
जज़्बा-ए -मासूम : Passion of Innocence



बुधवार, फ़रवरी 19, 2014

मै भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है....

A beutiful gazal pened by Javed Akhtar and Sung by Jagjit Singh.

मै भूल जाऊं तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं

यहाँ तो दिल के ये आलम क्या कहूं "कमबख्त"
भुला सका ना ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो एक ख्याल जो आवाज तक गया ही नहीं
वो एक बात जो मै कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं

अगर यह हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुम्हे भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं

ख्वाब = Dream, रब्त = Relation, हकीकत = Reality, कमबख्त = Idiot, आलम = Situation


गुरुवार, अप्रैल 10, 2008

यह भी क्या एहसान कम है

The "Passion" also known as Black Magic was one of my first Album in Gazals. After listening for the first time I was literally in love with the Gazals. The beauty was everywhere, in words, in music and in soothing voice of Jagjit Singh. The gazal is penned by Wajida Tabassum.

यह भी क्या एहसान कम है देखिये आपका,
हो रहा है हर तरफ़ चर्चा हमारा आपका

चाँद सूरज धुप सुबह कहकशां तारे समां,
हर उजाले ने चुराया है उजाला आपका

चाँद में तो दाग पर आप में वह भी नही,
चौधाह्वी के चाँद से बढ़के है चेहरा आपका

इश्क में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के,
अपने चेहरे पे सदा होता है धोखा आपका

बुधवार, मार्च 19, 2008

बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता

I don't know who penned these lines but these are simply superb.

बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता
बेनाम सा यह ...


सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूं नही जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता


वो एकही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता
बेनाम सा यह....


मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूं नही जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता


वो नाम जो बरसों से न चेहरा है न बदन है
वो ख्वाब अगर है टू बिखर क्यूं नही जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता
बेनाम सा यह....



शुक्रवार, जून 01, 2007

जवानी के हीले हया के बहाने

This is one the romantic Gazal and my favorite too. Gazal is penned by Sudarhan Faakir and Sung by Jagjit Singh. The gazal is part of Album Black Magic also known as Passion (one of my very first Gazal album) .


जवानी के हीले हया के बहाने
यह माना की तुम मुझसे परदा करोगी
यह दुनिया मगर तुझ सी भोली नही है
छुपा के मुहब्बत को रुशवा करोगी

बड़ी कोशिसो से बड़ी ख्वाहिशों से
तमन्ना की सहमी हुई सज़िशो से
मिलेगा जो मौका तो बेचैन होकर
दरीचों से तुम मुझको देखा करोगी

सताये की जब चांदनी की उदाशी
दुखाए की दिल जब फिजां की खामोशी
उफक की तरफ खाली नज़रें जमा कर
कभी जो ना सोचा वोह सोचा करोगी

कभी दिल की धड़कन मह्सूश होगी
कभी ठंढी सांसो के तूफ़ान उठेंगे
कभी गिर के बिस्तर पे आहें भरोगी
कभी झुक के तकिये पे रोया करोगी

जवानी के हीले हया के बहाने
यह माना की तुम मुझसे परदा करोगी
यह दुनिया मगर तुझ सी भोली नही है
छुपा के मुहब्बत को रुशवा करोगी

दिल के खुश रखने को

The beauty of Gazal lies in its wording. Sometimes I don't understand few words and that spoils the pleasure. There are lot of Gazals from legend Mirza Galib that I dont understand. But this gazal is very simple. The beauty of this Gazal inspires me to learn Urdu. As always its again sung by Jagjit Sigh. This Gazals feaures in his album named Mirage.

इक ब्राह्मन ने कहा है की येह साल अच्छा है

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चुल्हों मे हर रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नही रोयेगा
चैन की नींद हर इक शख्श यहां सोयेगा

आंधी नफरत की चलेगी ना कहीँ अब के बरस
प्यार की फस्ल उगायेगी ज़मीन अब के बरस

है यकीन अब ना कोई शोर शराबा होगा
ज़ुल्म होगा ना कहीं ख़ून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमें ना सहेगा कोई
अब मेरे देश मे बेघर ना रहेगा कोई

नये वादों का जो डाला है जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है की येह साल अच्छा है

दिल के खुश रखने को ग़ालिब येह ख्याल अच्छा है
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब येह ख्याल अच्छा है

रविवार, मई 20, 2007

तेरे खुशबु में बसें ख़त

There are few gazals which will tear my heart apart. This is one of them. Each line makes a deep impact and hits the inner core. The gazal is penned by Rajendranath Rahbar, and is being sung by Jagjit Singh.

तेरे खुशबु में बसें ख़त मै जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मै जलाता कैसे
तेरे हाथो के लिखे ख़त मै जलाता कैसे

जिनको दुनिया कि निगाहों से छुपाये रक्खा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रक्खा
दीन जिनको जिन्हे ईमान बनाए रक्खा
तेरे खुशबु में बसें ख़त मै जलाता कैसे

जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैगामें ज़ुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तेरे खुशबु में बसें ख़त मै जलाता कैसे

तुने दुनिया कि निगाहों से जो बच कर लिक्खे
साल हा साल मेरे नाम बराबर लिक्खे
कभी दिन में तो कभी रात को उठ्कर लिक्खे
तेरे खुशबु में बसें ख़त मै जलाता कैसे

प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथो के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ.
आग बहते हुये पानी में लगा आया हूँ.

It is a very sad part that I dont have any other gazal by Rajendranath Rahbar. I did a lot of searching on internet with no luck. If any one of you have any other gazal from this poet, please share with me.

सोमवार, मई 14, 2007

ए काश वो किसी दिन

This is a beautiful poem by Yogesh. The gazal is sung by Jagjit Singh and is part of one of his album called Many Facets. The is from a movie called "Hum Hain Pyar Mein". Though the movie was not at all hit, but its music was melodious, specially this song.

काश वो किसी दिन तनहाइयों में आयें,
उनको ये राजे दिल हम महफ़िल में क्या बतायें |

लगता है डर उन्हें तो हमराज़ लेके आयें,
जो पूछना है पूछे, कहना है जो सुनाएँ,
तौबा हमारी हम जो उन्हें हाथ भी लगाएँ |

काश वो किसी दिन तनहाइयों में आयें,
उनको ये राजे दिल हम महफ़िल में क्या बतायें|

उन्हें इश्क ग़र ना होता पलके नही झुकाते,
गालों पे सोख बादल, जुल्फो के ना गिरते,
कर दे ना क़त्ल हमको मासूम यह अदाएँ|

काश वो किसी दिन तनहाइयों में आयें,
उनको ये राजे दिल हम महफ़िल में क्या बतायें|